उदयपुर के ऐतिहासिक जगदीश मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा के पावन अवसर पर भगवान श्री जगन्नाथ का विशेष जेष्टांगन स्नान परंपरागत रूप से संपन्न हुआ. यह अनुष्ठान ठीक उसी प्रकार किया गया जैसे जगन्नाथ पुरी में होता है. सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को देखने के लिए मंगलवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे.
मंदिर के पुजारी विनोद पुजारी ने बताया कि ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी भगवान सहन नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें शीतलता प्रदान करने के लिए विशेष स्नान कराया जाता है. भगवान का दूध, दही, शहद, घी और पंचामृत से अभिषेक किया गया. इसके बाद 108 कलशों से शुद्ध जल स्नान भी हुआ. अभिषेक के बाद भगवान को करंट टाइम अवस्था में रखा जाता है, जिसे बीमार अवस्था कहा जाता है.

विश्राम काल में नहीं होते सामान्य दर्शन
इस अवधि में भगवान मंदिर के गर्भगृह में विश्राम करते हैं और उन्हें सामान्य दर्शन के लिए नहीं रखा जाता. भगवान की विशेष सेवा की जाती है और उन्हें हल्का, सुपाच्य भोग अर्पित किया जाता है. पुजारी विनोद ने बताया कि यह परंपरा जगन्नाथ पुरी से प्रेरित होकर शुरू की गई थी, क्योंकि उदयपुर का जगदीश मंदिर भी उसी परंपरा और स्थापत्य शैली पर आधारित है. जेष्टांगन स्नान के बाद भगवान 15 दिन तक आराम करते हैं. फिर आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान नगर भ्रमण के लिए चांदी के रथ पर सवार होकर निकलते हैं. यह रथ यात्रा उदयपुर शहर की सबसे प्रमुख धार्मिक घटनाओं में से एक है. इसे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी रथ यात्रा माना जाता है.

धार्मिक आस्था के साथ सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक
हर वर्ष हजारों श्रद्धालु और देश-विदेश से पर्यटक इस विशाल रथ यात्रा में भाग लेते हैं. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विग्रह विशेष रूप से सजाए गए रथ में विराजते हैं और शहर के मुख्य मार्गों से होकर मंदिर लौटते हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि यह संस्कृति और विरासत का जीवंत उदाहरण भी है, जो हर साल उदयपुर को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से एक नई पहचान दिलाती है.